श्री गणेश के बाद सबसे पहले प्रजापति (Prajapati) समाज का नाम क्यों लिया जाता है, प्रजापति समाज में कुल कितने गोत्र है? और इनकी शुरुआत कहा से हुई, पढ़े संपूर्ण जानकारी
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कुम्हार (Prajapati) समाज का इतिहास
नमस्कार! आज हम श्री प्रजापति समाज के बारे में कई सुनी और अनसुनी बातें आपको बताने वाले हैं जिनमें कुम्हार (प्रजापति) समाज का इतिहास, कुलदेवी, वंशज, गोत्र और भी कई सारे महत्पूर्ण बिंदु शामिल हैं।
इसके अलावा कुम्हार प्रजापति समाज के कितने गोत्र भारत में निवास करते हैं और कौनसे राज्य में सबसे ज्यादा गोत्र के प्रजापति समाज के परिवार रहते हैं इसकी जानकारी हम आपको विस्तार से बताने वाले हैं।
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कुम्हार शब्द की शुरुआत संस्कृत भाषा के ‘कुंभकार’ शब्द से हुआ है जिसका अर्थ होता है ‘मिट्टी के बर्तन बनाने वाला’ संस्कृत भाषा के अलावा भी द्रविड़ भाषा में भी कुंभकार का शाब्दिक अर्थ कुम्हार ही होता है।
कुम्हार को प्रजापति क्यों कहा जाता हैं?
वैदिक धर्म शास्त्रों के अनुसार कुम्हारों की उत्पत्ति भगवान दक्ष से मानी जाती है, भगवान दक्ष संपूर्ण पृथ्वी का राजा और सर्वगुण संपन्न होने के कारण देवी देवताओं ने भगवान दक्ष को प्रजापति की उपाधि दी इसके बाद से कुम्हार को प्रजापति नाम से भी जाना जाता है।
कुम्हार समाज के लोगो को कई और भी नाम से जाना जाता है जिनमें मुख्य रूप से कुम्हार, प्रजापति, कुंभकार, भांडे, कुमावत इत्यादि शामिल है, अगर आपको कोई भी इन नाम से संबोधित करें तो कृपया आप बुरा ना माने क्योंकि अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग पर्यायवाची शब्द पाए जाते हैं।
भारत के अलग-अलग राज्यों में कुम्हार समाज को अपनी स्थानीय भाषा में कई नाम से भी जाना जाता है और आप उन्हें आपसे छोटे या बड़े समझते हैं बल्कि ऐसा आपको नहीं करना चाहिए क्योंकि स्थानीय भाषा में नाम अलग है लेकिन उसका अर्थ कुम्हार ही है।
कुम्हार (प्रजापति) समाज की कुलदेवी
कुम्हार प्रजापति समाज की कुलदेवी भारत में दो बताई जाती है जो अपने अलग-अलग स्थान के माध्यम से पूजी जाती है, सबसे अधिक भारत में प्रचलित कुमार प्रजापति समाज की कुलदेवी श्रीयादे माता है जिनका विशाल मंदिर राजस्थान राज्य की जोधपुर जिले के झालामंड में स्थित है जो की 7 बीघा भूभाग में विशाल मंदिर बना हुआ है।
वहीं अगर हम पूर्वी भारत की बात करते हैं तो प्रजापति कुम्हार समाज के लोग अपनी कुलदेवी श्री रेणुका देवी को मानते हैं रेणुका देवी का 400 साल पुराना सबसे बड़ा मंदिर उत्तराखंड में स्थित है वहां माना जाता है कि इस मंदिर में जाने वाले सभी भक्तों की मुराद पूरी होती है।
कुम्हार (प्रजापति) समाज के गोत्र
संपूर्ण भारत में कुम्हार प्रजापति समाज के लगभग 1500 से 1700 गोत्र है। जो अलग-अलग राज्यों में एक गोत्र के परिवार मिलते हैं। लेकिन हर राज्य में कई गोत्र के कुम्हार समाज के परिवार रहते हैं।
प्रजापति समाज में कई गोत्र ऐसे हैं जिनके अर्थ एक ही है लेकिन नाम दो से अधिक मिलते हैं। उन सभी गोत्र को हम आपको एक अलग लिस्ट में बताने वाले हैं।
कुम्हार (प्रजापति) समाज के सभी गोत्र यहां देखें। prajapati gotra PDF
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