इस चैत्र नवरात्रि पर करें ये 5 काम, जीवन में आएंगी खुशियां

22 मार्च से शुरू होगी चैत्र नवरात्रि: चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा पर नवरात्रि, नव संवत सहित मनाए जाते हैं 5 पर्व, जानिए इन पर्वों से जुड़ी मान्यताएं

बुधवार, 22 मार्च से शुरू चैत्र नवरात्रि

बुधवार, 22 मार्च को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा) है। इस दिन चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होगी। नव संवत 2080 शुरू होगा। इसी तिथि पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार मत्स्य अवतार इस दिन लिया था । इन चार पर्वों के साथ ही इस दिन भगवान झूलेलाल की जयंती भी मनाई जाती है।

चैत्र नवरात्रि में कर सकते हैं ये शुभ काम

इस नवरात्रि में मंत्रों का जप करना चाहिए । श्रीराम का ध्यान करना चाहिए। राम नाम का और देवी मंत्रों का जप करें। श्रीराम चरित मानस, देवीसुक्त और देवी पुराण का पाठ करने से भक्त के सभी दुःख दूर हो सकते हैं।

नवरात्रि में पूजा-पाठ के साथ ही ध्यान करने से तनाव दूर होता है। मन को शांति मिलती है और संतुष्टि की भावना बढ़ती है।

चैत्र नवरात्रि यानी देवी पूजा के नौ दिन

ये देवी – दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करने का महापर्व है। इस नवरात्रि के संबंध में मान्यता है कि पुराने समय में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर देवी दुर्गा ने महिषासुर को मारने के लिए खुद को 9 स्वरूपों में प्रकट किया था। सभी देवताओं ने देवी को अलग-अलग शक्तियां और अस्त्र-शस्त्र भेंट किए थे। इस प्रक्रिया में पूरे नौ दिन लगे थे।

इस मान्यता की वजह से चैत्र शुक्ल पक्ष में नौ दिनों तक देवी पूजा की जाती है। इसके बाद देवी ने आश्विन मास में महिषासुर का वध किया था। देवी ने महिषासुर से नौ दिनों तक युद्ध किया था और दसवें दिन उसका वध किया था। इस कारण आश्विन मास में भी नौ दिनों तक नवरात्रि मनाई जाती है।

ब्रह्मा जी ने इस तिथि पर रची थी सृष्टि

मान्यता है – कि शिव जी इच्छा से ब्रह्मा जी ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर ही सृष्टि की रचना की थी। भगवान विष्णु ने सृष्टि में प्राण डाले थे। शिव जी, विष्णु जी और ब्रह्मा जी, तीनों देवता अलग-अलग भूमिका निभाते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं।

भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार

भगवान – विष्णु ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर ही अपना पहला अवतार मस्त्य यानी मछली के रूप में लिया था। उस समय विष्णु जी ने राजा मनु का घमंड तोड़ा था और प्रलय के समय सभी प्राणियों की, वेदों की रक्षा की थी।

नव संवत 2080 की होगी शुरुआत

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दी पंचांग का नया वर्ष शुरू होता है। इसे विक्रम संवत कहते हैं। राजा विक्रमादित्य ने इसकी M शुरुआत की थी, इसलिए इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है।

भगवान झूलेलाल ने की थी धर्म और लोगों की रक्षा

मान्यता है कि पुराने समय सिंध प्रांत में मिरखशाह नाम के मुगल सम्राट राज था। वह लोगों को इस्लाम धर्म कबूलने के लिए प्रताड़ित करता था। उस समय झूलेलाल जी का जन्म हुआ था और उन्होंने मिरखशाह से लोगों की और धर्म की रक्षा की थी। झूलेलाल जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर हुआ था।

चैत्र नवरात्रि में ऐसी रहेगी ग्रहों की स्थिति

इस चैत्र में नवरात्रि की शुरुआत में गुरु अपनी राशि मीन में सूर्य के साथ रहेगा। शनि अपनी राशि कुंभ में है। शुक्र और राहु की युति मेष राशि में रहेगी । शनि की तीसरी पूर्ण दृष्टि शुक्र-राहु पर रहेगी। इस वजह से चैत्र नवरात्रि में तंत्र से जुड़े काम जल्दी सफल हो सकते हैं। ये नवरात्रि सभी को सफलता दिलाने वाली रहेगी। इस समय में संयम से काम करेंगे तो बेहतर रहेगा।

धर्म के साथ सेहत के लिए खास है देवी पूजा का ये पर्व

अभी शीत ऋतु खत्म हो रही है और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो रही है। दो ऋतुओं के संधिकाल में मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-जुकाम, बुखार, पेट और त्वचा संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं काफी अधिक बढ़ जाती हैं। इस समय में खान-पान और जीवन शैली में किए गए सकारात्मक बदलाव की वजह से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है और हम मौसमी बीमारियों से बच जाते हैं।

व्रत-उपवास से पाचन तंत्र को मिलता है आराम

आयुर्वेद में बीमारियों के ठीक करने की कई विद्याएं बताई गई हैं। इन विद्याओं में एक है लंघन । लंघन विद्या में निराहार रहने की सलाह दी जाती है। निराहार रहने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और कई बीमारियों की रोकथाम हो जाती है।

नवरात्रि में पूजा-पाठ के साथ ही व्रत-उपवास किए जाते हैं। व्रत करने वाले लोग निराहार रहते हैं यानी अनाज नहीं खाते हैं, फलों का सेवन करते हैं, दूध और फलों का रस पीते हैं, जिससे शरीर को जरूरी ऊर्जा मिल जाती है। ऐसा करने से पाचन तंत्र को कम काम करना पड़ता है और पेट संबंधी दिक्कतें ठीक होती है।

मेडिटेशन से मन होता है शांत

नवरात्रि के दिनों में देवी पूजा करने वाले भक्त सुबह जल्दी जागते हैं। पूजा-पाठ करते हैं और मंत्र जप, ध्यान करते हैं। ऐसा करने से अशांति और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। जल्दी जागते हैं तो आलस दूर होता है। दिनभर के काम करने के लिए ज्यादा समय मिलता है। शांत मन और सकारात्मकता के साथ किए गए कामों में सफलता मिलने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।

चैत्र नवरात्रि में ऐसी रहेगी ग्रहों की स्थिति

इस चैत्र में नवरात्रि की शुरुआत में गुरु अपनी राशि मीन में सूर्य के साथ रहेगा। शनि अपनी राशि कुंभ में है। शुक्र और राहु की युति मेष राशि रहेगी। शनि की तीसरी पूर्ण दृष्टि शुक्र-राहु पर रहेगी। इस वजह से चैत्र नवरात्रि में तंत्र से जुड़े काम जल्दी सफल हो सकते हैं। ये नवरात्रि सभी को सफलता दिलाने वाली रहेगी। इस समय में संयम से काम करेंगे तो बेहतर रहेगा।

चैत्र नवरात्रि में सूर्य पूजा कैसे करें

  • रोज सुबह जल्दी उठें और स्नान के बात तांबे के लोटे में जल भरें। चावल और फूल डालें। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
  • ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जप करते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए।
  • अगर सूर्य के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं तो घर में ही सूर्य देव की प्रतिमा या तस्वीर की पूजा कर सकते हैं।
  • धूप-दीप जलाएं, मिठाई भोग लगाएं। सूर्य के मंत्रों का जप करें। मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिए।

इस महीने को खर मास भी बोला जाता है

धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के कई श्लोक बताए गए हैं।

जिनका जाप खर मास में किया जाए तो पुण्य मिलता है। मंत्र जाप करते समय विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए। ऐसा ध्यान करना चाहिए कि वो नवीन और मेघ के समान श्याम हैं। वो दो भुजधारी हैं। पीले वस्त्र पहने हुए हैं और बांसुरी बजा रहे हैं। ऐसे रूप में भगवान का ध्यान करना चाहिए।

इस महीने में इस मंत्र का जाप करें

ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय

स्नान-दान

मीन मास में सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे और तिल मिलाकर नहाएं। फिर सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद उगते हुए सूरज को अर्घ्य दें। फिर दिन में गाय को घास खिलाएं। इसके बाद जरुरतमंद लोगों को खाने की चीजें और कपड़ों का दान करना चाहिए।

गुस्से का जवाब गुस्से से न दें

नारद मुनि और विष्णु जी की कथा; जब कोई हमारा अपमान करे तो हमें धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए

नारद मुनि और विष्णु जी से जुड़ी कथा है। विष्णु जी ने नारद जी का घमंड तोड़ने के लिए अपनी माया से विश्वमोहिनी नाम की राजकुमारी का स्वयंवर आयोजित किया। नारद जी ने विश्वमोहिनी को देखा तो वे उस पर मोहित हो गए और उससे विवाह करने का मन बना लिया।

विश्वमोहिनी के स्वयंवर में देवर्षि नारद भी जाना चाहते थे। इसलिए नारद जी विष्णु जी के पास पहुंच गए। उनसे कहा कि मुझे सुंदरता दे दीजिए, जिसे देखकर विश्वमोहिनी मुझे विवाह के लिए चुन ले ।

विष्णु जी ने नारद मुनि को वानर बना दिया। नारद जी ऐसे ही स्वयंवर में पहुंच गए। स्वयंवर शुरू हुआ तो विष्णु जी भी वहां पहुंच गए। विश्वमोहिनी ने नारद मुनि को नहीं, बल्कि विष्णु जी को चुन लिया और वरमाला पहना दी।

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